Sandeep Jatwa
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SECOND CHANCE
HINDI​

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एक रहस्यमयी फ़ोन कॉल


यह कैसे हो सकता है? वही बेढंगा सपना महीने में बाहरवी बार? काले रंग की कैडिलैक चलाते हुए शेखर कपूर ने सोचा जिसके माथे पर विचारों की शिकन थी। कैडिलैक सड़क की सतह पर तैर रही थी। जैसे ही शेखर कपूर, ऐरोवॉक शू कंपनी के चेयरमैन, ने एक्सीलरेटर पर अपना पैर दबाया उसकी कार ने टोयोटा को पीछे छोड़ दिया और उसने स्पीडोमीटर पर नज़र डाली--104 किलोमीटर प्रति घंटा।

कार की आधी खुली खिड़की से हलकी हवा आकर शेखर के चेहरे को चूम रही थी।

रेड़ियो पर एक महिला ने कहा, ‘रूपये में डॉलर के मुकाबले सत्ताईस पैसे की गिरावट आई है और यह ग्रीष्म की सबसे बड़ी गिरावट हैं।’

हवा का एक झोंका जैसे ही अधखुली खिड़की से टकराया, शेखर ने अपने चारों तरफ़ देखा, क्योंकि उसे कुछ महसूस हुआ--अचानक माहौल में बदलाव। उसने कार परफ्यूम के अलावा भी कोई गंध सूँघी। कार के अंदर अचानक ही एक अलग माहौल था लेकिन वह नहीं जानता था क्या बदल चुका था। उसे लगा जैसे कुछ बुरा होने वाला है। उसने आँखों पर ज़ोर डालकर दूर आसमान में देखा, एक छोटी आकृति आकाश में उभर रही थी लेकिन उसकी नज़रें धुँधली थी जैसे कार की विंडशील्ड के पहले डैशबोर्ड पर कुछ तैर रहा हो। शेखर ने धुँधलेपन को अपने बाएँ हाथ से स्पर्श करने की कोशिश की लेकिन उसने केवल हवा को छुआ।

‘ब्राज़िल की फ़ुटबॉल टीम ने अर्जेंटीना को हराया और यह केवल...’

मुझे चश्मे की ज़रूरत है। यह क्या है?

उसने एक बार और आसमान की तरफ़ देखा लेकिन फिर उसे नज़रअंदाज़ करते हुए समाचार पर अपना ध्यान लगाया आख़िरकार यह फ़ुटबॉल के बारे में था।


‘अगला मैच सोमवार को इटली और फ्रांस के बीच है और ये देखना दिलचस्प...’

जैसे ही शेखर ने रेडियो की आवाज़ बढ़ाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया वही बुरा सपना उसकी आँखों के सामने छा गया। उस सपने को अपने दिमाग़ से निकालने की निर्बल कोशिश में उसने अपनी तर्जनी उँगली से स्टीयरिंग व्हील पर तबला बजाया।

उसके सीने में ज़ोरदार कंपन हुआ जिसने उसका ध्यान खींच लिया। ये कंपन अचानक और इतनी जल्दी से बढ़े कि शेखर लगभग सहम गया और उसने तुरंत अपने कोट की जेब से कँपकँपाता ब्लैकबेरी निकाल लिया।

उसने जो देखा उससे उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई। फ़ोन की काली स्क्रीन पर दो हरे शब्द चमक रहे थे--प्रथम चेतावनी। उसके मन में विचार उठा कि आख़िर स्क्रीन पर कोई नंबर और कॉल को अस्वीकार करने का कोई विकल्प क्यों नहीं था। उसने अपने आसपास देखा, सड़क पर बहुत से वाहन तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहे थे। उसने एक बार फिर विंडशील्ड के सामने तैरते धुँधलेपन के पार आकाश में देखा। वह छोटी आकृति अब तक सफ़ेद बादलों से बने उल्टे भँवर का रूप ले चुकी थी जो धीरे धीरे घूम रहा था। शेखर परेशान लग रहा था। फ़ोन के कंपन बढ़ते जा रहे थे। क्या यह फटने वाला है? शेखर ने सोचा। वह नहीं जानता था उसे क्या करना चाहिए। उसने जहाँ भी मोबाईल स्क्रीन को छूने की कोशिश की शब्द प्रथम चेतावनी ने स्थान बदल लिया व उसके स्थान पर एक उत्तर शब्द उभर आया। उसे कॉल अस्वीकार करने का कोई विकल्प नहीं दिख रहा था। उसने फ़ोन को बंद करने की भी कोशिश की लेकिन बंद करने का स्विच कार्य नहीं कर रहा था। बेमन से उसने उत्तर शब्द पर अपना अँगूठा छुआ और जैसे ही उसके अँगूठे ने स्क्रीन को स्पर्श किया धीरे धीरे घूमते सफ़ेद बादल काले पड़ गए और तेज़ी से घूमने लगे और पूरे आकाश पर काले बादल छा गए।

उसने थूक गटका और अपने चारों तरफ़ देखा और ये देखकर उसकी आँखें दहशत से फैल गई कि सड़क पर और कोई वाहन नहीं था।

जब उसने फ़ोन अपने बाएँ कान पर रखा, उसके हाथ काँप रहे थे।

“हैलो,” शेखर हकलाया।

“शेखर कपूर,” एक मोटी संवेदनाशून्य आवाज ने कहा।

जैसे ही शेखर ने वह आवाज़ सुनी उसे यकीन हो गया कि जिस अप्रिय भावना का उसे एहसास हो रहा है उसका कारण यह आवाज़ ही है। डैशबोर्ड के ऊपर हवा में उसने किसी अदृश्य चीज़ की उपस्थिति महसूस की, और जैसे कोई उसे चीरने वाला है इस भय के साथ उसने उस अदृश्य चीज़ को छूने की कोशिश की परंतु अब भी वहाँ पर कुछ नहीं था।

“कार चलाते समय सावधान रहे, यह खतरनाक है और यह अपने आप को बदलने का एक संकेत है,” आवाज़ ने चेतावनी दी।

“कौन बोल रहा है?” शेखर ने चिंतित स्वर में पूछा।

“तुम्हारा सवाल गलत है,” आवाज़ ने कहा। शेखर को ऐसा लगा जैसे आवाज़ फ़ोन से नहीं आ रही थी बल्कि कोई उसके सामने महज़ दो फ़ुट दूर बैठकर उससे बात कर रहा था।

शेखर ने थूक गटका, “तुम कहाँ से बोल रहे हो?”

“अब यह सही सवाल है,” आवाज़ हँसी, “न्याय की नगरी से।”

“सॉरी,” शेखर को लगा जैसे उसने कुछ गलत सुना। “न्याय की नगरी?”

“हाँ, तुमने सही सुना है,” आवाज़ मुस्कुराई।

“कहाँ है ये न्याय की नगरी?” शेखर चिढ़ के मारे लगभग चिल्लाया। “और ये क्या बकवास है? तुम मुझसे क्या चाहते हो? और तुम्हें मेरा नंबर कहाँ से मिला? अगर तुम्हें लगता है कि तुम मुझे डरा कर मुझसे पैसे ऐंठ सकते हो तो तुम गलत हो।” बोलते ही शेखर को डर सा लगा। उसे ऐसा नही कहना चाहिए था। उसके मन मे विचार आया।

आवाज हँसी। “सभी सवाल बेमतलब है। तुमने जो गलत किया है उसे बदल डालो। और रही पैसे की बात तो मुझे बताओ तुम्हारे हिसाब से तुमने अपने सपने में जो फ़र्श देखा है उसकी क़ीमत क्या होगी?”
हैरानी से शेखर का मुँह खुला रह गया, आखिर वह आवाज़ उसके सपने के बारे में कैसे जानती थी? उसने पूरी दुनिया में अपने सपने के बारे में किसी को नहीं बताया था। उसने बोलने के लिए अपना मुँह खोला लेकिन वह आवाज़ जा चुकी थी। वह फ़ोन को घूरता रहा बिना यह जाने कि वह क्या करें, क्या सोचें और किस पर विश्वास करें। कोई भी किसी के सपने के बारे में नहीं जान सकता तो वह कैसे...? भयभीत, शेखर ने फ़ोन को पास की सीट पर फेंक दिया।

उसने चारों तरफ़ अपनी गर्दन घुमाई और उसने जो देखा उसके होश उड़ गए। हाईवे पर बहुत सी गाड़ियाँ दौड़ रही थी जहाँ कुछ ही देर पहले एक भी वाहन नहीं था। सारी गाड़ियाँ कहाँ गायब हो गई थी? शेखर ने ख़ुद से पूछा और ऊपर की तरफ़ देखा जहाँ बादलों का भँवर घूम रहा था। उसे ये देखकर हैरानी हुई, आसमान में घूम रहे काले बादल अब सफ़ेद हो चुके थे और उन्होंने घूमना बंद कर दिया था और सामान्य रूप से व्यवस्थित हो गए थे।

शेखर पूरी तरह से उलझन में था। यह क्या था? उसने क्या देखा? कहीं उसकी आँखें उसे किसी तरह से धोखा तो नहीं दे रही थी? क्या यह किसी प्रकार का छल था? या यह भी उसी तरह का कोई सपना था जिसने आज सुबह उसे नींद से जगा दिया था। उसके चेहरे पर उलझन भरे भाव अब गहरा चुके थे। क्या इसका कोई संबंध उस सपने से था? या...

क्या मैं पागल हो रहा हूँ?

शेखर ने अपने आप को विचारों के जाल मे फँसता हुआ पाया और वह जितना उससे निकलने की कोशिश कर रहा था उतना ही फँसता जा रहा था। एक फ़ोन कॉल बिना किसी नंबर के, मौसम में अचानक बदलाव, वह आदमी शेखर के सपने के बारे में जानता था, यह सभी सवाल उसे परेशान कर रहे थे और उसके पास एक भी जवाब नहीं था। एक चीज़ जो शेखर अच्छे से जानता था वह यह थी कि उसने यह आवाज़ पहली बार सुनी थी।

पंद्रह मिनट बाद, शेखर अब भी अपनी तेज़ रफ़्तार कार में विचारमग्न था। वह कौन था? जो भी उसने कहा था क्या उसका कोई मतलब था? शेखर ने सोचा। वह ऐरोवॉक शू कंपनी से केवल दो किलोमीटर दूर था और उसने फिर से एक जाना पहचाना अनिष्टसूचक भाव महसूस किया। उसने अपने आसपास देखा, सबकुछ सामान्य नज़र आ रहा था। कार चलाते वक़्त उसके मन में  सपने, फ़ोन कॉल और मौसम में बदलाव के विचार थे। उसे लगा जैसे कुछ बहुत भयानक होने वाला है हालाँकि वह नहीं जानता था क्या। ओह नहीं... शायद वह जानता था वह भयानक चीज़ क्या थी। वह चीज़ उसकी हथैली के नीचे थी--स्टीयरिंग व्हील! शेखर ने उसे घुमाने की कोशिश की, लेकिन यह बिलकुल नही घुम रहा था। उसने और अधिक ताक़त लगाई लेकिन यह पूरी तरह से जाम हो गया था, जैसे इसे सौ वर्षों तक बिना छुए छोड़ दिया गया हो।

कैडिलैक का स्टीयरिंग व्हील जाम नहीं हो सकता, शेखर ने सोचा।

कार चलाते समय सावधान रहे, यह खतरनाक है और यह अपने आप को बदलने का एक संकेत है।
शेखर की आँखें दहशत के मारे फटी रह गई थी और उसके हाथों ने स्टीयरिंग व्हील को कसकर थाम लिया था। यह कैसे हो सकता है? शेखर ने सोचा। उसकी तेज़ रफ़्तार कार कुछ बाईं ओर घुस रही थी। वह जानता था अगर उसे दुर्घटना से बचना है तो उसे स्टीयरिंग व्हील घुमाना होगा।

वह चेतावनी सच नहीं हो सकती, शेखर ने सोचा।

वह अपनी मौत की परछाई को देख सकता था जो उसका इंतज़ार कर रही थी और वह ख़ुद उसकी ओर तेज़ गति से बढ़ रहा था। शेखर की एड्रिनल ग्रंथि ने सिकुड़कर हार्मोन रक्त में स्त्रावित कर दिया। वह अपनी मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह महसूस कर रहा था। उसका दिल फड़फड़ा रहा था, उसकी पुतलियाँ फैल गई थी, उसकी आँखें और अधिक उभरी हुई लग रही थी और उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थी। उसने ज़ोर से साँस अंदर खींची।

कैडिलैक बंदुक की गोली की रफ़्तार से होंडा को लगभग रगड़ते हुए निकली। शेखर ने अपनी पूरी ताकत से ब्रेक पर पैर दबाया, कार के टायर चीख़ें और अनियंत्रित होकर घसीट गए। कैडिलैक के बाईं तरफ़ के टायर हवा में ऊपर उठ गए। भय के बादलों ने शेखर का दम घोंट दिया। उसने सोचा, यह पलटने वाली है। मैं मरने वाला हूँ। कार हाइवे के बीचोबीच रूक गई और उसके बाईं ओर के पहिए ज़मीन पर धम्म से गिर गए। उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया कि कार पलटी नहीं।

उसकी उभरी हुई आँखों ने तुरंत चारों तरफ़ का जायज़ा किया और यह सुनिश्चित किया कि वह सुरक्षित है। उसने गहरी साँस ली और अपने हाथ के पिछले हिस्से से माथे का पसीना पोंछा। अपने शरीर के सभी हिस्सों को जाँचने के बाद उसने आह भरी, मैं ज़िंदा हूँ। उसने अपनी आँखें बंद की, उसे सुरक्षित रखने के लिए अपनी माँ का शुक्रिया अदा किया और कार से बाहर आ गया।

अन्य वाहनों को दुर्घटना से बचने के लिए गाड़ियाँ मोड़ना पड़ी।

“क्या तुम सो रहे हो, बेवकूफ़... ” शेखर ने सुना जब एक फोर्ड उसके पास से निकली लेकिन उसने नज़रअंदाज कर दिया क्योंकि उसने अभी अभी मौत के न्योते को नकार दिया था।
अब कई गाड़ियाँ कैडिलैक के पास से गुज़रते समय धीमी हो रही थी। हर गुज़रते पल के साथ शेखर के चेहरे पर डर की लकीरें कमजोर पड़ रही थी।

एक मारूति उसके पास आकर रूकी और सफ़ेद कुर्ता पहने अधेड़ उम्र के ड्राइवर ने पूछा “क्या हुआ? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ?”

शेखर ने उसे घूरा और वह उसे तब तक घूरता रहा जब तक कि मारूति ड्राइवर को असहज न लगने लगा, फिर बिना कुछ कहे मारूति ड्राइवर वहाँ से चला गया।

शेखर ने अपनी पसंदीदा कार पर खरोंच ख़ोजी और उम्मीद करता रहा था कि उसे वे न मिले। उसने कैडिलैक को हर तरफ़ से देखा और जब उसे कोई खरोंच दिखाई नहीं दी उसने चैन की साँस ली लेकिन जैसे ही उसने कार का दरवाज़ा खोला संतुष्टि, डर में तब्दील हो गई। शेखर ने अपने आप को कार में बैठने के लिए मनाया और जब वह कार में बैठ रहा था तभी एक एस.यु.वी. उसके पास आकर रूकी और पीछे की सीट पर बैठी महिला ने पूछा, “क्या सब ठीक है?”

शेखर ने कोई जवाब नहीं दिया जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं, वह अपनी कार में बैठा, इंजन चालू किया और कार धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी। अपने बेतरतीब ख़्यालों में भी वह जानता था उसे कार धीरे व सावधानीपूर्वक चलानी होगी।

सपना, अनिष्टसूचक भावना, थरथराता फ़ोन, रहस्यमयी फ़ोन कॉल, चेतावनी, घूमते बादल और स्टीयरिंग व्हील, यह सब एक ही दिन में? यह क्या हो रहा है? शेखर हैरान था, वह ना तो कुछ सोच पा रहा था और ना ही सोचना बंद कर पा रहा था। कार चलाते समय सावधान रहें, यह खतरनाक है, उसके दिमाग़ में एक आवाज़ गूँजी जिसने उसके पूरे शरीर को मौत के ख़ौफ़ से भर दिया, वही ख़ौफ़ जिसने कुछ समय पहले उसका हलक सूखा दिया था।

शेखर का दिमाग़ चकरा रहा था; उसमें सिर्फ़ उलझे हुए सवाल फुदक रहे थे। वह उलझन व ख़ौफ़ के गर्त में धंसता जा रहा था और किसी चीज ने उसे चौंका दिया। यह फिर से स्टीयरिंग व्हील ही था। उसने स्टीयरिंग व्हील को थोड़ा सा घुमाया और उसे हैरत हुई कि स्टीयरिंग व्हील बहुत आसानी से घूम रहा था जैसे उसमें कभी कोई ख़राबी थी ही नहीं।

अब स्टीयरिंग व्हील के सुचारू रूप से काम करने बावजूद वह कैडिलैक को बहुत धीमे चला रहा था जैसे यह कोई अविदित आदेश हो। कार ऐरोवॉक शू कंपनी की तरफ़ बहुत धीरे धीरे रेंग रही थी, और शेखर की नज़रें सड़क पर गड़ी थी लेकिन उसका दिमाग़ भटक रहा था। उसके चेहरे पर ख़ौफ़ और हैरानी थी।
शेखर दाईं तरफ़ मुड़ा, अपनी कंपनी के गेट से परिसर में दाख़िल हुआ, और कैडिलैक को लाईम-स्टोन फ़र्श पर बीचोबीच पार्क करके उसने चाबी हमेशा की तरह कार में ही छोड़ दी। कार से उतरते हुए उसने अपने फ़ोन पर नज़र डाली, एक बेचैनी के साथ उसे उठाया और अपने कोट के जेब में डाल लिया।
मुझे सामान्य दिखना चाहिए, उसने सोचा। और उसके लिए इसका मतलब था--अभिमानी।

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